Monday 29 March 2021

क़ानून की हुक्मरानी

 क़ानून की हुक्मरानी

 लिखारी

मख़दूम टीपू सलमान (लाहौर)




क़ानून की हुक्मरानी किसी भी इन्साफ़ पर खड़े समाज को बनाने के लिए ज़रूरी है। क़ानून की हुक्मरानी का मतलब है कि रियासत में हर काम क़ानून के तहत और क़ानून की मर्ज़ी के मुताबिक़ होगा। हकूमत क़ानून के मुताबिक़ चलेगी और हर फ़ैसला क़ानून के मुताबिक़ होगा। यानी इन्साफ़ का मयार ये होगा कि फ़ैसला क़ानून की मरज़ी से हो। देखने की बात ये है कि ऐसा क्यों और कैसे किया जाता है।

            क़ानून की हुक्मरानी की दो बुनियादी ज़रूरतें होती हैं। क़वानीन का होना और क़वानीन की बरतरी।

 क़वानीन का वजूद / होना।

            क़ानून इन कामों के करने (या उनसे बाज़ रहने) के लिए बनाया जाता है जिनमें दूसरे लोग किसी ना किसी तरह related हूँ। मिसाल के तौर पर अगर मेरे घर के चारों अतराफ़ में लोग घर बना लें तो मेरा अपने घर में दाख़िल होना नामुमकिन हो जाएगा। लिहाज़ा एक क़ानून बना दिया जाता है कि घर बनाने से पहले मुक़र्ररा इदारे से नक़्शा मंज़ूर करवाना ज़रूरी होगा। और इदारे के लिए rules बना दिए जाते हैं जिनके मुताबिक़ होने पर ही नक़्शा पास किया जा सकता है। अगर नक़्शा पास करवाने का क़ानून ना हो या इदारे के पास इख़तियार हो कि वो जिसका मर्ज़ी जैसा मर्ज़ी नक़्शा पास कर दे तो किसी का नक़्शा उस की मर्ज़ी के मुताबिक़ पास होगा और किसी का उस की मर्ज़ी के ख़िलाफ़। किसी के नक़्शे से इस का हमसाया ख़ुश होगा और किसी के नक़्शे से इस का हमसाया तंग।

ऐसी हालत में तक़रीबन आधे लोग अपने हमसाइयों के नक़्शों से ख़ुश होंगे जबकि बाक़ी आधे सख़्त नाराज़। अब जब ये नाराज़ हमसाए नक्शे वाले इदारे को शिकायत करेंगे तो इदारे के पास कोई standard ना होगा जिसके मुताबिक़ वो देखे कि शिकायत वाला नक़्शा सही है या ग़लत। so इदारा हर नक़्शे को शुरू से आख़िर तक देखे गा और हर मुआइने के बाद फ़ैसला करेगा कि ये नक़्शा सही है या नहीं । इस फ़ैसले की reasons किया होंगी? 

इस में दो मुश्किलें होंगी। पहली तो ये कि हर एक शिकायत वाले नक़्शे की शुरू से आख़िर तक पूरी तरह जांच पड़ताल करना होगी जो कि एक मुश्किल, लंबा और थका देने वाला काम होगा। दूसरे ये कि जब इन नक़्शों से related शिकायात अदालतों में जाएँगी तो अदालतों को भी इदारे का हर फ़ैसला हर पहलू से देखना पड़ेगा जिसमें ज़ाहिर है कि काफ़ी वक़्त ज़ाए होगा। दूसरे हर फ़ैसला अपने reference और ख़ालिस अपने facts पर होने की वजह से अछूता होगा और इन्साफ़ का कोई भी एक standard ना होने की वजह से ये कह सकना मुश्किल होगा कि फ़ैसला ठीक था या नहीं? मयार की absence समाजी बेचैनी का सबब बनेगी क्योंकि हर वो party जो मुक़द्दमा हारेगी यही जानेगी कि इस के साथ सख़्त नाइंसाफ़ी हुई है।

इन्ही सब मुश्किलों से बचने के लिए क़वानीन बनाए जाते हैं।

 

क़वानीन की बरतरी

क़वानीन के होने के बाद इन्साफ़ पर खड़ा समाज के बनाने के लिए ज़रूरी दूसरी शर्त है क़वानीन की बरतरी। इस बरतरी के दो पहलू होते हैं। पहला ये कि जिस point पर क़ानून मौजूद है इस नुक़्ते पर जिसने भी फ़ैसला करना है वो इस क़ानून के मुताबिक़ फ़ैसला करेगा नाके अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़। दूस्रा ये कि हर important नुक़्ते पर ज़रूर क़वानीन बना लिए जाएं ताकि फ़ैसले personal पसंद के बजाए उसूलों की बुनियाद पर किए जाएं।

 

क़ानून की हुक्मरानी की Importance

जब कुछ लोग इक्कठा रहना शुरू करते हैं तो समाज की शुरुआत होती है। किसी भी समाज में ताक़त, हुनर या ज़रूरत में सब लोग एक जैसे नहीं होते। इसलिए सब लोगों के rights and obligations भी एक से नहीं होते। लेकिन अगर समाज में लोगों को खुला छोड़ दिया जाय कि वो अपने तमाम मुआमलात ख़ुद ही नबेड़ लें तो फिर समाज में जंगल का क़ानून लग जाता है। यानी जिसकी लाठी उस की भैंस। ऐसे समाज में जल्द या बदीर ख़ाना-जंगी शुरू होजात है और समाज तबाह हो जाता है। चुनांचे समाज को बरक़रार रखने के लिए समाज के मुख़्तलिफ़ members के rights and obligations का एक ताना-बाना बुना जाता है। rights and obligations के इस ताने-बाने को निज़ाम-ए-क़ानून की मद्द से लगाया जाता है। इस system of law की बुनियाद इस बात पर होती है कि समाज के तमाम members के चंद बुनियादी हुक़ूक़ एक जैसे होंगे, जिनका फ़ैस्ला क़ानून करेगा। मिसाल के तौर पर क़ानून की हुक्मरानी में मुल्क का प्रधान मंत्री किसी आम मज़दूर का घर इस से ना छीन सकता है ना ज़बरदस्ती ख़रीद सकता है। अगर मुल्क का सदर किसी भिकारी को भी क़तल करे गा तो इस को भी अदालतें फांसी पर लटका देंगी वग़ैरा। अगर किसी के ये basic rights छीने जाऐंगे तो वो अदालत जा सकता है, जहां पर इस की शिकायत का फ़ैसला क़ानून के मुताबिक़ ही किया जाय गा। वो निज़ाम जहाँ शहरीयों के rights and obligations का फ़ैस्ला किसी आदमी की मर्ज़ी से नहीं बल्कि लागू क़वानीन के तहत किया जाता है, क़ानून की हुक्मरानी का निज़ाम कहलाता है।




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